जौनपुर। खुटहन ब्लाक के सबसे बड़ा आवादी व क्षेत्रफल वाला गाँव आदि गंगा गोमती के तट पर बसा हैं। यहां पर गोमती के किनारे अत्येष्टि स्थल बनाया गया हैं। जहां पर ब्लाक क्षेत्र के अलावा जौनपुर जनपद के शाहगंज व बदलापुर तहसील के तथा अन्य पड़ोसी जिले सुल्तानपुर , अम्बेकरनगर, आजमगढ़ के लोग भी अपने अपने शवों का दाह संस्कार करने के लिए लेकर आते हैं। इस घाट पर दो महिलाए दोनों सगी देवरानी जेठानी भी हैं। यही लोग अंतिम संस्कार कराती हैं। उन्होंने पतियों की मौत के उनके काम को विरासत की तरह खुद ही स्वीकार कर लिया हैं।
सरिता की जिंदगी में इतवार नहीं
खुटहन ब्लाक मुख्यालय से करीब 4 किमी दूर गोमती घाट की रेत पर सरिता की जिंदगी में इतवार नही आता हैं।पिलकीछा गाँव की सरिता के पति चुनमुन इसी घाट पर अंतिम संस्कार कराते थे। 11 साल पहले उनकी मौत हो गयी थी। सरिता ने कहा की मेरे सामने दो ही रास्ते थे। मजदूरी करूँ या अपने पति की विरासत संभालूँ। लोगो ने डराया। लाशें देख कर डरोगी। नीद नही आएगी समाज क्या कहेगा। अंततः मैंने घाट का रास्ता चुना। इसी से जीविकोपार्जन परिवार का कर रही हूँ।
महराती को भी जिंदगी घाट पर ले आईं
महराती करीब पचीस साल पहले जब ब्याह करके आई थी। पति बन्ने की गूँज के बीच उनकी डोली उतारी गयी थी। पिछले आठ वर्ष पहले इनकी जिंदगी की धुरी बन गया।पति संजय की मौत के बाद वह भी घाट पर अंतिम संस्कार कराती हैं।दाह संस्कार से मिलने वाले पैसो स ही खर्च चलता हैं। एक बेटी की शादी कर चुकी हूँ। एक ही बेटा है वह भी हाथ व पैर से बिकलांग हैं। यह कार्य सात वर्ष से कर रही हूँ।
आग दिलवाने पर आँख से निकल पड़ते हैं आँसू
श्मशान घाट तक मृतक के अपनों की आँखे सुख जाती हैं। ऐसा कही नही होता की चिता को आग दिलवाने वाला रो पड़े। लेकिन पिलकीछा घाट पर अक्सर देखा जाता हैं।जब किसी बच्चे की देह चिता पर हो मातृत्व की कोमलता पिघल कर आँखों से बह निकलती हैं।दोनों ने कहा कि ऐसे परिवार से दक्षिणा लेना भी हम पर भारी गुजरता हैं।
महीने में लगभग होते हैं 20 से 25 अंतिम संस्कार
सरिता और महराती के पास आय का कोई जरिया नही हैं। इन लोगो के पास मात्र पाँच पाँच बिस्वा ही जमीन हैं।माह में लगभग 20 से 25 अंतिम संस्कार कराती हैं। एक संस्कार में ढाई सौ से तीन सौ रुपया तक मिल जाते हैं। खास बात यह की इन दोनों महिलाओं को न ही बिधवा पेंशन मिलती है और न ही आवास योजना का लाभ ही मिला।
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