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जौनपुर। जैव विविधता का सरंक्षण एवं महत्व पर हुआ आनलाइन संगोष्ठी, बोले डा. देव प्रकृति रक्षितः रक्षिता।

जौनपुर। आई क्यूसी के तत्वावधान में बीएस पार्टी शासकीय महाविद्यालय पेंड्रा छत्तीसगढ़ में प्राणि विज्ञान विभाग द्वारा आन लाइन संगोष्ठी का आयोजन हुआ। संगोष्ठी का विषय जैव विविधता का सरंक्षण एवं महत्व का था। महाविद्यालय के प्राचार्य द्वारा मुख्य वक्ता एवं अतिथियों का स्वागत किया गया। संगोष्ठी के समन्वयक डॉ अतुल कुमारी तिवारी ने संगोष्ठी प्रारंभ होने के पूर्व मुख्य वक्ता उत्तर प्रदेश के गौरव *तिलक धारी महाविद्यालय जौनपुर के प्राणि विज्ञान विभाग में सहायक प्रोफेसर डॉ देव ब्रत मिश्र* के शैक्षणिक उन्नयन के विषय मे बताया गया। मुख्य वक्ता डॉ देव ब्रत मिश्रा ने जैव विविधता के सरंक्षण एवम महत्व पर विस्तार से बताया कि जिस जैव विविधता की बात आज के वैज्ञानिक कर रहे है। वास्तव में वह आज के हज़ारों हज़ार वर्ष पहले हमारे ऋषि मुनियों ने बता दिए थे। गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित राम चरित में जैव विविधता, प्रकृति, पारिस्थितिकी तंत्र का वर्णन मिलता है।
छिति जल पावक गगन समीरा ।
पंच रचित अति अधम शरीरा।।
भारत वर्ष की सनातन संस्कृति अनादि काल से प्रकृति पूजक रही है। तथा सम्पूर्ण सृष्टि का संचालन प्रकृति में विद्यमान पंचमहाभूतों पृथ्वी, जल, अग्नि आकाश,एवम वायु द्वारा संचालित होता है। इन्ही पंच महाभूतों से ही जीव जगत की रचना हुई है। मानव की उत्पत्ति के समय से पंच महा भूतों के साथ परस्पर संबंध बना हुआ है। जैव विविधता के दूरगामी परिणाम को हमारे ऋषि मुनियों, मोहम्मद पैगम्बर साहब ने हजारों हज़ार वर्ष पहले ही जैव विविधता, पारिस्थितिकी तंत्र, प्रकृति के संबंध मे धर्म को वैज्ञानिक आधार बनाकर आम जनमानस को संदेश दिया। सभी जीवों और अजीवित (नदी, तालाब, पर्वत,भूमि) घटकों के बीच पारस्परिक एवं पारंपरिक संबंधों को धर्म एवं विज्ञान से जोड़ दिए। हमारे वेदों, पुराणों, महाभारत, मत्स्य पुराण, पवित्र कुरान में मिलता है कि वृक्षो में देवताओं का वास होता है। हमारी संस्कृति में पतित पावनी गंगा,भूमि, पर्वत, वृक्ष की पूजा का विधान बनाया गया। यह केवल आस्था ही नही है अपितु वैज्ञानिक पहलू भी है की प्रकृति का संरक्षण होता है। आज हम वन जंगल की बात करते है जबकि हमारे पूर्वजों ने वन को लंग्स ऑफ नेचर तथा पेड़ों पौधों को लिविंग ऑक्सिजन सिलेंडर कहा। वैज्ञानिक इसी को प्रकाश संश्लेषण की क्रिया के माध्यम से ऑक्सिजन बनती है। सच्चाई यह है कि जैव विविधता सजीव संपदा है। इसमें आनुवंशिक जैव विविधता, प्रजातीय जैव विविधता तथा परित्रन्त्रीय जैव विविधता, 1992 में ब्राज़ील के रियो डी जेनेरो में जैव विविधता सम्मेलन का आयोजन हुआ। सम्मेलन में 155 देशों का प्रतिनिधित्व रहा। सम्मेलन में प्रकृति सरंक्षण के लिए अंतरराष्ट्रीय संस्था आई युसीएन इंटरनेशनल यूनियन फ़ॉर कन्जेरवेशन ऑफ नेचर एंड नेचुरल रिसोर्सेज नाम की संस्था बनाई गई। जबकि भारत देश विश्व का पहला देश था। जिसने ईसा पूर्व सम्राट अशोक ने प्रकति के सरंक्षण के कानून बनाये गए थे।भारत मे 2002 ने जैव विविधता अधिनियम बना। अधिनियम का मुख्य उद्देश्य जैविक संसाधनों का सरंक्षण, उपयोग का प्रबंधन तथा स्थानीय समुदायों के साथ मिलकर भारत की समृद्ध जैव विविधता को सरंक्षित करना।
जैव विविधता ने मानव संस्कृति के विकास में बहुत योगदान दिया। प्रत्येक प्रजातियों से हमे संकेत मिलता है कि जीवन का आरंभ कैसे हुआ, भविष्य में कैसे विकसित होगा। पिछले कुछ दशकों से जनसंख्या बृद्धि के कारण प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग बहुत बढ़ गया है।देश मे प्राकृतिक संसाधन सीमित है। विशाल जनसंख्या की आवश्यकता की पूर्ति के लिए प्राकृतिक संसाधनों को दोहन बहुत तेज़ी से हो रहा है। हाइड्रो कॉर्बन्स, टॉक्सिक हैवी मेटल्स के कारण सवेंदनशील एवम कमजोर प्रजातियां नस्ट होने के कगार पर है।आई यू सी यन की ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार 2000 से अब तक घोंघा विलुप्त होने के कगार पर है। प्राकृतिक आपदाएं सृस्टि का आक्रोश है या हमारी आपके द्वारा की गयी लापरवाही व प्रकृति के साथ छेड़छाड़ का परिणाम है। समस्त मानव की जिम्मेवारी है कि प्रकृति का सरंक्षण करे। सरंक्षण यथार्थ रूप में करने की आवश्यकता है। हमे जैव विविधता को अक्षुण्य रखने के लिए आर्थिक विकास, जन सांख्यकी की ओर प्राकृतिक सरंक्षण में संतुलन कायम रखने का सुझाव दिया गया।
प्रकृति रक्षित रक्षिता:
प्रकृति हमारी रक्षा तभी करेगी जब हम प्रकृति की रक्षा करेंगे।।।।* संगोष्ठी में आभार महाविद्यालय के वरिष्ठ प्रोफेसर एमपी रोहिणी द्वारा किया गया। संगोष्ठी में भारत वर्ष के लगभग सभी राज्यो केविश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों के प्राध्यापक एवं शोध छात्र तथा स्नातकोत्तर के छात्र छात्राएं सम्मिलित हुए।

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